चारोळ्या म्हणजे चार ओळींची कविताच की! सोपी आणि सुटसुटीत! आजकाल २०-२० क्रिकेटच्या जमान्यात short is sweet हाच मंत्र झालाय. नाटकांमधेही ३ अंकी नाटके जाऊन २ अंकी आणि एकांकीकेंच पेव फुटलंय.
अर्थात त्यात वाईट काहीच नाही शेवटी quantity पेक्षा quality जास्त महत्वाची नाही का?
दिस उडूनिया गेले, कुण्या पाखरापरीस,
परि उडे ना अजुनी, माझे आसुसले मन..
पुन्हा तुझ्या विचारांनी मन मला छळू लागलं!
कित्येक तुला चाहणारे!
पण माझ्यासारखे कितीक असतील?
आयुष्य तुला वाहणारे!
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येतो क्षण, जातो क्षण.
उमजत नाही अजूनपण!
श्वासांवरती रचत श्वास,
कशासाठी जगतो आपण?
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तूच माझ्या जीवनातील, सुखाचा बहर ही,
तूच माझ्या रुदनातील, दुःखाचा कहर ही.
जपतो आहे आजही ते क्षण तुझ्या सहवासाचे,
बरेच अमृताचे प्याले अन थोडे जहर ही...
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रंगला डाव ऐसा, मनाशी मनाचा,
खेळता येत नाही, न येई मोडताही..
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जा जा म्हणले, तरी ती नाही जात,
लपवून ठेऊ म्हणले, तरी लपून नाही राहत.
नावासोबत चिकटून बसते, पाऊल ठेवताच जगात,
ना पिवळ्या उन्हात, ना सावळ्या घनात,
तुझी माझी भेट होते, माझ्या बावळ्या मनात
शब्द येती ना जे ओठी, तुज समोर पाहता,
नाहीस उधळली तू ती, फुले ओंजळीमधली,
वाटेत सांडल्या काही, त्या पाकळ्या वेचीत गेलो.
मज लाभली नाही जेव्हा, साथ तुझी मखमाली,
मी काट्यामधुनी माझा, मार्ग रेखित गेलो...
टिपूर चांदण्यात न्हालं.
मन एकटंच माझं,
पुन्हा सैरभैर झालं..
मी मलाच शोधू पाहतो, मी मलाच शोधू पाहतो!
सूर कधी ज्या जुळले नाही, ते गीत गुण गुणत राहतो.
मी मलाच शोधू पाहतो, मी मलाच शोधू पाहतो!
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तुझ्या डोळ्यात पाहताना, मला पडतो साऱ्या जगाचा विसर,
शब्दाविण बरंच काही बोलून जाते तुझी ती निशब्द नजर..
अर्थात त्यात वाईट काहीच नाही शेवटी quantity पेक्षा quality जास्त महत्वाची नाही का?
कवितांबद्दल बोलायचं झालंतर आजही दीर्घ कविता, गजल आहेतच की. पण एखाद्या दीर्घ गझलेचाही रसास्वाद २-२ ओळींच्या शेरातूनच घेतला जातो. चारोळ्यांचही काहीस असंच आहे. चार ओळींमध्ये फार मोठा अर्थ सांगण्याची ताकद चारोळीत असते. माझ्या मते प्रत्येक चारोळीला ताणून तिची कविता करता येतेच पण हे ज्या त्या कवीने ठरवावं कि तसं करायचं कि नाही. माझं म्हणाल तर मी सहसा तसं करत नाही.
मला आवडते चारोळी! तिच्या पहिल्या दोन ओळीतला तो प्रस्तावनेचा भाव, तिसऱ्या ओळीत मूळ गाभ्याला हात घालण आणि चौथ्या ओळीत काळजात रुतेल अस काहीस बोलून जाण हे मला खूप भावतं. माझ्या मते चारोळीची तिसरी ओळ ही एखाद्या स्प्रिंगबोर्ड प्रमाणे असते ज्यावरून झेप घेऊन चौथ्या ओळीला ती चारोळी थेट वाचणाऱ्याच्या मनात झेपावते. 'नमनाला घडाभर तेल' झालेलं आहे तेव्हा आता हे चारोळी पुराण जास्त न वाढवता माझ्या काही चारोळ्याच खाली देत आहे. आशा आहे वाचणाऱ्यांना आवडतील.
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वाळू सरकत आहे, हातातून कण कण!
आज आठवती सारे, ते विसरले क्षण!दिस उडूनिया गेले, कुण्या पाखरापरीस,
परि उडे ना अजुनी, माझे आसुसले मन..
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बघ पुन्हा आकाश गळू लागलं,पुन्हा तुझ्या विचारांनी मन मला छळू लागलं!
कोसळणाऱ्या धारांनी पेटून उठल्या ज्वाळा,
मन माझं कोरडं गवत, धुमसून धुमसून जळू लागलं!
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कित्येक तुला पाहणारे, कित्येक तुला चाहणारे!
पण माझ्यासारखे कितीक असतील?
आयुष्य तुला वाहणारे!
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येतो क्षण, जातो क्षण.
उमजत नाही अजूनपण!
श्वासांवरती रचत श्वास,
कशासाठी जगतो आपण?
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तूच माझ्या जीवनातील, सुखाचा बहर ही,
तूच माझ्या रुदनातील, दुःखाचा कहर ही.
जपतो आहे आजही ते क्षण तुझ्या सहवासाचे,
बरेच अमृताचे प्याले अन थोडे जहर ही...
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जोडता येत नाही, न येई तोडताही,
गुंतता येत नाही, न येई सोडताही.रंगला डाव ऐसा, मनाशी मनाचा,
खेळता येत नाही, न येई मोडताही..
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जा जा म्हणले, तरी ती नाही जात,
लपवून ठेऊ म्हणले, तरी लपून नाही राहत.
नावासोबत चिकटून बसते, पाऊल ठेवताच जगात,
सरणावरही जळत नाही, तिला म्हणतात 'जात'..
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------ना पिवळ्या उन्हात, ना सावळ्या घनात,
तुझी माझी भेट होते, माझ्या बावळ्या मनात
शब्द येती ना जे ओठी, तुज समोर पाहता,
भाव दाटती ते सारे, माझ्या मिटल्या डोळ्यात...
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------नाहीस उधळली तू ती, फुले ओंजळीमधली,
वाटेत सांडल्या काही, त्या पाकळ्या वेचीत गेलो.
मज लाभली नाही जेव्हा, साथ तुझी मखमाली,
मी काट्यामधुनी माझा, मार्ग रेखित गेलो...
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नभ श्याम रंगी झालं,टिपूर चांदण्यात न्हालं.
मन एकटंच माझं,
पुन्हा सैरभैर झालं..
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गजबजलेल्या वाटेवरती, एकटाच चालू लागतो,मी मलाच शोधू पाहतो, मी मलाच शोधू पाहतो!
सूर कधी ज्या जुळले नाही, ते गीत गुण गुणत राहतो.
मी मलाच शोधू पाहतो, मी मलाच शोधू पाहतो!
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तुझ्या डोळ्यात पाहताना, मला पडतो साऱ्या जगाचा विसर,
शब्दाविण बरंच काही बोलून जाते तुझी ती निशब्द नजर..
अखंड बडबड करणारा मी देखील अचानक होतो गप्प,
कदाचित हाही असावा, तुझ्याच सहवासाचा असर!
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